पंजाब पर अहमद शाह अब्दाली के वर्ष 1756 में चौथे आक्रमण के दौरान उसने करतारपुर को तहस-नहस करके जला दिया तो. बाबा गुरबरभाग सिंह जी ने जसवान पहाड़ियों की ओर प्रस्थान किया।
लेकिन अफगान फौजों ने उनका पीछा किया लेकिन गांव नेहरी(नेहरियाँ) जिस अब 'दर्शनी खड्ड' कहा जाता है, के पास एक जल की धारा के पास पहुँचने पर गुरबरभाग सिंह ने प्रार्थना की और अचानक उस जल की धारा ने बाढ़ का रूप धारण कर लिया और पीछा कर रहे दुश्मन उस बाढ़ में बह गए।
इसके बाद बाबा जी गांव मैड़ी के पास के जंगलों में ध्यान और प्रभु-भक्ति के लिए के लिए एक बेर के पेड़(Zizyphus Jujuba) के नीचे बैठ गए। उस पेड़ पर नर सिंह(नार सिंह या नाहर सिंह), जो
उन प्रेतबाधित पहाड़ियों के सबसे शक्तिशाली राक्षस थे, रहते थे। नर सिंह किसी भी आकार या रूप ग्रहण कर सकता था और वो सफ़ेद वस्त्र धारण करके एक किशोर ब्राह्मण के रूप में सपने में महिलाओं को प्रताड़ित करता था और पीड़ितों को बीमारी, बुरी आत्माओं से जकड़े जाना, पागलपन आदि समस्याएँ होती थी। नर सिंह उस क्षेत्र में आने वाले किसी भी व्यक्ति को तंग किए बिना नहीं छोड़ता था।
अपनी आदत के अनुसार नर सिंह ने गुरबरभाग सिंह को भी अपने दुष्कृत्यों से अपने काबू में करने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सका। बाबा गुरबरभाग सिंह ने अपनी आध्यात्मिक शक्ति का उपयोग करते हुए नर सिंह पर कब्जा कर लिया और उसे एक पिंजरे (बाबा जी के पास एक तोता था पिंजरे में, तोते को उड़ा कर) में बन्द कर दिया।
नर सिंह ने बाबा जी से अपने ऊपर रहम करने को कहा और कहा- भूत-प्रेत ही मेरा भोजन है। भूत-प्रेत खाए बिना मैं मर जाऊँगा।
इस पर बाबा जी ने नर सिंह को हुक्म दिया कि अब से वो सिर्फ़ उन भूत-प्रेतों को अपना भोजन बनाए जो आम जनता को सताते हैं, भूत-प्रेत ग्रस्त लोगों को उन भूतों से छुड़ाए जो इस स्थान (डेरे) पर आएं !
नर सिंह ने बाबाजी का हुक्म मान लिया और वहाँ आने वाले हर भूत-प्रेत ग्रस्त मनुष्य को ठीक करने लगे।
नर सिंह को सत मार्ग पर लाने के लिए और अपनी महान आध्यात्मिक शक्तियों के कारण बाबा गुरबरभाग सिंह को असीम प्रसिद्धि की प्राप्ति हुई।
लेकिन अफगान फौजों ने उनका पीछा किया लेकिन गांव नेहरी(नेहरियाँ) जिस अब 'दर्शनी खड्ड' कहा जाता है, के पास एक जल की धारा के पास पहुँचने पर गुरबरभाग सिंह ने प्रार्थना की और अचानक उस जल की धारा ने बाढ़ का रूप धारण कर लिया और पीछा कर रहे दुश्मन उस बाढ़ में बह गए।
इसके बाद बाबा जी गांव मैड़ी के पास के जंगलों में ध्यान और प्रभु-भक्ति के लिए के लिए एक बेर के पेड़(Zizyphus Jujuba) के नीचे बैठ गए। उस पेड़ पर नर सिंह(नार सिंह या नाहर सिंह), जो
उन प्रेतबाधित पहाड़ियों के सबसे शक्तिशाली राक्षस थे, रहते थे। नर सिंह किसी भी आकार या रूप ग्रहण कर सकता था और वो सफ़ेद वस्त्र धारण करके एक किशोर ब्राह्मण के रूप में सपने में महिलाओं को प्रताड़ित करता था और पीड़ितों को बीमारी, बुरी आत्माओं से जकड़े जाना, पागलपन आदि समस्याएँ होती थी। नर सिंह उस क्षेत्र में आने वाले किसी भी व्यक्ति को तंग किए बिना नहीं छोड़ता था।
अपनी आदत के अनुसार नर सिंह ने गुरबरभाग सिंह को भी अपने दुष्कृत्यों से अपने काबू में करने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सका। बाबा गुरबरभाग सिंह ने अपनी आध्यात्मिक शक्ति का उपयोग करते हुए नर सिंह पर कब्जा कर लिया और उसे एक पिंजरे (बाबा जी के पास एक तोता था पिंजरे में, तोते को उड़ा कर) में बन्द कर दिया।
नर सिंह ने बाबा जी से अपने ऊपर रहम करने को कहा और कहा- भूत-प्रेत ही मेरा भोजन है। भूत-प्रेत खाए बिना मैं मर जाऊँगा।
इस पर बाबा जी ने नर सिंह को हुक्म दिया कि अब से वो सिर्फ़ उन भूत-प्रेतों को अपना भोजन बनाए जो आम जनता को सताते हैं, भूत-प्रेत ग्रस्त लोगों को उन भूतों से छुड़ाए जो इस स्थान (डेरे) पर आएं !
नर सिंह ने बाबाजी का हुक्म मान लिया और वहाँ आने वाले हर भूत-प्रेत ग्रस्त मनुष्य को ठीक करने लगे।
नर सिंह को सत मार्ग पर लाने के लिए और अपनी महान आध्यात्मिक शक्तियों के कारण बाबा गुरबरभाग सिंह को असीम प्रसिद्धि की प्राप्ति हुई।
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