गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर सन 1666 ई.(23 पौष सुदी सातवीं 1723) को पटना साहिब, बिहार में हुआ था। इनका मूल नाम 'गोविंद राय' था। गोविंद सिंह को सैन्य जीवन के प्रति लगाव अपने दादा गुरु हरगोविंद सिंह से मिला था और उन्हें महान बौद्धिक संपदा भी उत्तराधिकार में मिली थी। वह बहुभाषाविद थे, जिन्हें फ़ारसी अरबी, संस्कृत और अपनी मातृभाषा पंजाबी का ज्ञान था। उन्होंने सिक्ख क़ानून को सूत्रबद्ध किया, काव्य रचना की और सिक्ख ग्रंथ 'दसम ग्रंथ' (दसवां खंड) लिखकर प्रसिद्धि पाई। उन्होंने देश, धर्म और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सिक्खों को संगठित कर सैनिक परिवेश में ढाला।
दशम गुरु गोविंद सिंह जी स्वयं एक ऐसे ही महापुरुष थे, जो उस युग की आतंकवादी शक्तियों का नाश करने तथा धर्म एवं न्याय की प्रतिष्ठा के लिए गुरु तेगबहादुर सिंह जी के यहाँ अवतरित हुए। इसी उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा था।
मुझे परमेश्वर ने दुष्टों का नाश करने और धर्म की स्थापना करने के लिए भेजा है।
गुरु गोविंद सिंह के जन्म के समय देश पर मुग़लों का शासन था। हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की औरंगज़ेब ज़बरदस्ती कोशिश करता था। इसी समय 22 दिसंबर, सन 1666 को गुरु तेगबहादुर की धर्मपत्नी गूजरी देवी ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया, जो गुरु गोविंद सिंह के नाम से विख्यात हुआ। पूरे नगर में बालक के जन्म पर उत्सव मनाया गया। बचपन में सभी लोग गोविंद जी को 'बाला प्रीतम' कहकर बुलाते थे। उनके मामा उन्हें भगवान की कृपा मानकर 'गोविंद' कहते थे। बार-बार 'गोविंद' कहने से बाला प्रीतम का नाम 'गोविंद राय' पड़ गया।
खिलौनों से खेलने की उम्र में गोविंद जी कृपाण, कटार और धनुष-बाण से खेलना पसंद करते थे। गोविंद बचपन में शरारती थे लेकिन वे अपनी शरारतों से किसी को परेशान नहीं करते थे। गोविंद एक निसंतान बुढ़िया, जो सूत काटकर अपना गुज़ारा करती थी, से बहुत शरारत करते थे। वे उसकी पूनियाँ बिखेर देते थे। इससे दुखी होकर वह उनकी मां के पास शिकायत लेकर पहुँच जाती थी। माता गूजरी पैसे देकर उसे खुश कर देती थी। माता गूजरी ने गोविंद से बुढ़िया को तंग करने का कारण पूछा तो उन्होंने सहज भाव से कहा,
उसकी ग़रीबी दूर करने के लिए। अगर मैं उसे परेशान नहीं करूँगा तो उसे पैसे कैसे मिलेंगे।
पिताजी का नाम : गुरु तेग बहादुर जी
माताजी का नाम : माता गुजरी जी
पत्नियाँ : अजीत कौर जी, सुंदर कौर जी, साहिब कौर जी
संतान : बाबा अजीत सिंह जी, बाबा जुझार सिंह जी, बाबा जोरावर सिंह जी, बाबा फ़तेह सिंह जी
दशम गुरु गोविंद सिंह जी स्वयं एक ऐसे ही महापुरुष थे, जो उस युग की आतंकवादी शक्तियों का नाश करने तथा धर्म एवं न्याय की प्रतिष्ठा के लिए गुरु तेगबहादुर सिंह जी के यहाँ अवतरित हुए। इसी उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा था।
मुझे परमेश्वर ने दुष्टों का नाश करने और धर्म की स्थापना करने के लिए भेजा है।
गुरु गोविंद सिंह के जन्म के समय देश पर मुग़लों का शासन था। हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की औरंगज़ेब ज़बरदस्ती कोशिश करता था। इसी समय 22 दिसंबर, सन 1666 को गुरु तेगबहादुर की धर्मपत्नी गूजरी देवी ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया, जो गुरु गोविंद सिंह के नाम से विख्यात हुआ। पूरे नगर में बालक के जन्म पर उत्सव मनाया गया। बचपन में सभी लोग गोविंद जी को 'बाला प्रीतम' कहकर बुलाते थे। उनके मामा उन्हें भगवान की कृपा मानकर 'गोविंद' कहते थे। बार-बार 'गोविंद' कहने से बाला प्रीतम का नाम 'गोविंद राय' पड़ गया।
खिलौनों से खेलने की उम्र में गोविंद जी कृपाण, कटार और धनुष-बाण से खेलना पसंद करते थे। गोविंद बचपन में शरारती थे लेकिन वे अपनी शरारतों से किसी को परेशान नहीं करते थे। गोविंद एक निसंतान बुढ़िया, जो सूत काटकर अपना गुज़ारा करती थी, से बहुत शरारत करते थे। वे उसकी पूनियाँ बिखेर देते थे। इससे दुखी होकर वह उनकी मां के पास शिकायत लेकर पहुँच जाती थी। माता गूजरी पैसे देकर उसे खुश कर देती थी। माता गूजरी ने गोविंद से बुढ़िया को तंग करने का कारण पूछा तो उन्होंने सहज भाव से कहा,
उसकी ग़रीबी दूर करने के लिए। अगर मैं उसे परेशान नहीं करूँगा तो उसे पैसे कैसे मिलेंगे।
पिताजी का नाम : गुरु तेग बहादुर जी
माताजी का नाम : माता गुजरी जी
पत्नियाँ : अजीत कौर जी, सुंदर कौर जी, साहिब कौर जी
संतान : बाबा अजीत सिंह जी, बाबा जुझार सिंह जी, बाबा जोरावर सिंह जी, बाबा फ़तेह सिंह जी